इस्लाम के अनुसार पैदा होने वाला हर बच्चा फितरत [1] के मुताबिक़ मुसलमान पैदा होता है। [2]उसके मरते समे, ये माना जाता है कि अगर वह बालिग होने से पहले मरता है तो वह नहीं पापी है और पापों से साफ है। और ये माना जाता है कि वह बच्चा सीधा जन्नत में जाता है ।
जिन बच्चों के माता-पिता मुस्लिम नहीं हैं, उनकी भी यही स्थिति है। पैगम्बर मुहम्मद ने कहा कि “मेंने पूरी इंसानियत के बच्चों को जन्नत में हज़रत इब्राहिम के इर्द गिर्द देखा, वहां बैठे लोगों ने पैगम्बर मुहम्मद से पूछा के ” ए अल्लाह के रसूल क्या आपने मुष्रिकों के बच्चों को भी जन्नत में देखा” उन्होंने ने कहा “हां मुष्रिकों के बच्चों को भी देखा”। [3]”
ये दुनिया का जीवन जिसका अंत निश्चित है यहां पर को बच्चे है वह हमेशा बचे नहीं रहेंगे। मगर आख़िरत का जीवन अनंत है इसलिए वहां के जीवन में विकास और उम्र बढ़ने जैसी कोई सांसारिक विशेषताएं नहीं होंगी, स्वर्ग के बच्चे और युवा हमेशा वहां बच्चे और युवा ही रहेंगे। [5]
मां बाप जिन्होंने अपना बच्चा इस दुनिया में खो दिया हो वह वहां अल्लाह की इजाज़त और जन्नत में उनके बच्चे से मिलने की ज़िद करेंगे। यह स्थिति उन्हें अल्लाह को जानने और उसके आदेशों और निषेधों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करती है। हज़रत मुहम्मद इस स्थिति में पड़े मां बाप के लिए कहते हैं “हर मुसलमान जिसके तीन बच्चे अभी जवानी तक पहुँचे बिना मर गए हों, अल्लाह उसे बच्चों के प्रति उसकी दया और करुणा के कारण उसके मां बाप को स्वर्ग में रखता है । “ये सुन कर किसी ने प्रश्न किया ” अगर किसी के दो बच्चे मरे हो वह भी?” उन्होंने कहा “हां वह भी”। [6]
इस्लाम कठिन परिस्थिति में धैर्य को प्रोत्साहित करता है। [7] यह जानते हुए कि हर निर्णय अल्लाह [8] की ओर से आता है, यह अनुशंसा की जाती है कि उस पर हुए दुर्भाग्य के लिए विद्रोह से बचें। [9] पैगंबर मुहम्मद ने अपने कई बेटों की मृत्यु देखी और मुसलमानों को सिखाया कि ऐसी स्थिति में क्या करना है और क्या नहीं करना है। उदाहरण के लिए, जब उनके पुत्र इब्राहिम का डेढ़ वर्ष की आयु में निधन हो गया, तो वे पिता के रूप में अपने आंसू नहीं रोक सके; उन्होंने मृतकों के बाद रोने, चिल्लाने और विलाप करने से सख्ती से मना किया। उन्होंने उन लोगों को निम्नलिखित उत्तर दिया जो आश्चर्यचकित थे कि वह अपने बेटे की मृत्यु पर रोया; ” “यह दया के कारण है। क्योंकि आँख रोती है, दिल उदास है। लेकिन हम वही कहते हैं जिससे हमारा रब खुश होता है। हे इब्राहिम, तुम्हारे जाने से हम बहुत दुखी हैं।” [10]
इस्लाम के आलिमों में से एक बदिउज़्ज़मान सईद नर्सी इस दुनिया को एक जेल कि ज़िन्दगी से तुलना करते हैं। मरे हुए बच्चे की आज़ादी और हमेशा रहने वाली खुशी को इस जुमले से बताते हैं: ” एक बार एक आदमी जेल में होता है और उसके पास एक प्यारा सा बच्चा भेजा जाता है। वह बेचारा अपनी परेशानियों को लेकर परेशान और उस बच्चे को सुख ना दे पाने के कारण और भी परेशान, फिर दयालु जज एक आदमी भेज के उससे उसको कहलवाता है कि : “ये तुम्हारा ही बच्चा है मगर मेरा प्रजा भी है । इसको में ले लूंगा और इसकी पालन पोषण का मेरी ज़िम्मेदारी है”। वह आदमी रोता पीटता है मेरे को तसल्ली देने वाले बच्चे को में नहीं दूंगा । जेल में उसके मित्र साथी उस कहते हैं कि: “तुम्हारा दुख बिना किसी वजह का है। अगर तुम उस बच्चे के लिए इतने परेशान और दुखी हो तो उसे बजाए इस परेशानियों से भरे है जेल में रखने से बेहतर है कि उसे जज के पास भेज दो वहां वह अच्छी और सादात वाली ज़िन्दगी जिएगा । और यदि आप अपने लिए खेद महसूस करते हैं; अगर बच्चा यहाँ रहता है, तो अस्थायी लाभ होता है, लेकिन बच्चे के लिए कठिनाई और बहुत परेशानी होती है। अगर वह वहां जाता है, तो वह आपको एक हजार गुना फायदा पहुंचाएगा। क्योंकि यह सुलतान की दया को आकर्षित करने का कारण बनता है, यह आपका तारणहार बन जाता है। सुलतान उसे आपसे मिलाना चाहेगा। बेशक, वह उसे मिलने के लिए जेल नहीं भेजेगा, हो सकता है कि वह आपको जेल से बाहर ले जाए और आपको उस महल में भेज दे, ताकि आप बच्चे से मिल सकें। बशर्ते कि आप में सुलतान के प्रति विश्वास और समर्पण हो…”[11] नर्सी का यह उदाहरण मृत बच्चों की स्थिति के प्रति इस्लामी दृष्टिकोण को व्यापक रूप से व्यक्त करता है।
अंत में इस्लाम, यह अच्छी खबर देता है कि जिस व्यक्ति ने अपने बच्चे को खो दिया है, वह उसके साथ फिर से जुड़ सकेगा। अपनी औलाद को खो देने वाले इंसान को दोबारा उससे मिलवाने की बधाई देता है। दुख के समय नाफरमानी ना करके सब्र और काम दुख करने वाले और ” जिनपर कोई आपदा आ पड़े, तो कहते हैं कि हम अल्लाह के हैं और हमें उसी के पास फिर कर जाना है। “[12] आयत पर अमल करने वाले सखस को जन्नत में अपने बच्चों से मिलने का मौक़ा मिलेगा [13] ।
[1] फ़ितरत: वह विशेषता जो सृष्टि से आती है। आयात में ” आप सीधा रखें अपना मुख इस धर्म की दिशा में, एक ओर होकर, उस स्वभाव पर, पैदा किया है अल्लाह ने मनुष्यों को जिस [ पर।” इंसानों को एक ख़ुदा के ईमान के साथ पैदा किया है। यानी इस दुनिया में आने वाला इन्सान पैदाइश के वक़्त मुसलमान ही होता है।
[2] बुखारी, तफसीर, (रूम) 2; म 6755 मुस्लिम, कदर, 22
[3] जनाइज़, 93, ताबीर, 48; बक. नवावी, शहरू मुस्लिम
[4] मोमिन /39
[5] इन्सान /19, वाक़िआ /17-18
[6] बुखारी, जनाइज़ 6, 91; मुस्लिम, बिर 153
[7] ज़ुमर /10
[8] मोमिन /12
[9] बुखारी, जनाइज़,31.
[10] बुखारी, जनाइज़, 43
[11] बदिउज़्ज़मान सईद नर्सी / मक्तुबात / 17. मक्तुप
[12] बाक़ार, 2/155,156.
[13] माईदा / 119, अहज़ाब / 65